दुनिया सिकुड़ते सिकुड़ते मुझ तक रह गयी है
कभी दुनिया का मतलब होता होगा मनुष्य, प्राणी और जीवन जात
लेकिन कुछ साल पहले दुनियाने अपना रूप बदला ...और थोड़ी अपने आप में छोटी हो गयी
मेरी दुनिया मेरा देश बन गयी
तब सोचा न था कि इससे भी छोटा कुछ हो सकता है
मेरी दुनिया के लिए जान देनेकी तक बातें हुई थी तब
लेकिन फिर और बटवारा हुआ और मेरी दुनिया मेरे मजहब तक आ रुकी
मजहब से फिर गाँव, मोहल्ले, गली और घर तक का रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं था
अब तो मै खुद ही मेरी दुनिया हूँ, बस कुछ ही दिन की बात है
जिस्म का हर पुर्जा अपनी आप में दुनिया बनने वाला है
और खुद की दुनिया बसाने के लिए, दिमाग, एक दिन, दिल की दुनिया उजाड़ देगा
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